मुरैना ब्यूरो चीफ
संवाददाता – मोती सिंह तोमर
हैडिगा -अंबाह से दर्शन के लिए गए नीति सौरभ जैन
खबर विस्तार से -जब सिद्धाचल की खराब स्थिति देखी तो उनका मन द्रवित हो गया। उन्होंने कुछ बाते जानकारी लेकर हमारे सामने रखी । सिद्धाचल गुफाओ और गोपाचल रॉक कट स्मारकों (ग्वालियर) में सैकड़ों जैन मूर्तियों को इस्लामिक आक्रमणकारियों ने नष्ट कर दिया। अधिकांश जैन मूर्तियां 15 वी शताब्दी के दौरान की हैं, हालांकि कुछ सातवीं शताब्दी की है। 15 वी शताब्दी के दौरान नक्काशी की गई मूर्तियां तोमर राजा डूंगर सिंह और उनके बेटे कीर्ति सिंह के शासनकाल के दौरान बनाई गई थी। तोमर रानी या तो जैन थी या जैन धर्म की बहुत बड़ी अनुयाई थी। गोपाचल रॉक कट स्मारकों में जैन तीर्थंकरों की लगभग 1500 मूर्तियां हैं और सिद्धाचल गुफाओं में लगभग 31 जैन मंदिर हैं।गोपाचल रॉक कट स्मारकों को सिद्धाचल गुफाओं की तुलना में पहले दिनांकित किया गया है।स्मारकों के पास पाए गए शिलालेख उन्हें 1440 से 1453 ईस्वी तक तोमर राजाओं को श्रेय देते हैं। 1527 के आसपास बाबर (मुगल सम्राट) ने उनके विनाश का आदेश दिया और इन दोनों स्मारकों को हटा दिया गया।
तोमर वंशीय राज्य काल में ही कुशराज जैसवाल ने गोपाचल पहाड़ी के बाहरी तरफ कुछ गुफाओं में मूर्तियां खुदवाई तथा मंदिर बनवाकर प्रतिष्ठाये करवाई। संवत 1521 में ग्वालियर के जैसवाल कुलभूषण उल्हा साहू के जेष्ठ पुत्र साहू पदम सिंह ने 24 जिनालयो का निर्माण करवाया।
सिद्धाचल पर्वत ग्वालियर रेलवे स्टेशन से लगभग 5 किलोमीटर दूर और गोपाचल पर्वत (भगवान पार्श्वनाथ की 42 फुट ऊंची प्रतिमा, एक पत्थर की बावडी) फूलबाग से लगभग 3 किलोमीटर दूर है। शिंदे की छावनी होते हुए उरवाई गेट से आगे ढोडापुर गेट की ओर कोटेश्वर रोड पर कोटेश्वर महादेव मंदिर के सामने से रास्ता हैं। उरवाई गेट पर भी त्रिशलागिरी पर्वत है।जिस पर माता त्रिशला और भगवान महावीर के पांच कल्याणक को दर्शाती प्रतिमाये सहित अनेक तीर्थंकर प्रतिमाये विराजमान है।
सिद्धाचल पर्वत पर पांच गुफाएं हैं इन गुफाओं का मार्ग कठिन है। तीन गुफाओं में अनेक बड़ी छोटी मूर्तियां हैं। दो गुफाओ पर जाने का तो मार्ग ही नहीं है इससे पता नहीं चलता कि उन गुफाओं में क्या है। संभवत मार्ग कठिन होने के कारण समाज का ध्यान नहीं गया। यह क्षेत्र पुरातत्व विभाग के अंदर आता है। पुरातत्व विभाग भी इस ओर कोई ध्यान नहीं दे रहा है।
विश्व की सबसे बड़ी अद्वितीय प्रतिमा 21 वे तीर्थंकर भगवान नमिनाथ की अतिशयकारी पद्मासन अवस्था में गुफा नंबर 2 में है। जिसकी अवगाहना लगभग 6 मीटर है। भगवान नमिनाथ का मुख उत्तर दिशा की ओर है। पीठासन पर लांछन नीलकमल है। गजराज कलश लिए अभिषेक करते हुए दिखाए गए हैं। पीठासन की बगल में दोनों ओर उछलते हुए शेर हैं। पीठासन पर 5 पंक्तियों का लेख है। अक्षर विक्रम संवत स्पष्ट दिख रहा है। माला लिए हुए आकाशचारी तथा घुटनो के पास चमरवाहक चमर ढोर रहे हैं। छाती पर श्रीवत्स है। गुफा के ऊपर शिखर है तथा शिखर के ऊपर कलश बने हैं। इस गुफा में दो आले एक के ऊपर एक बने हुए हैं जिसमें खडगासन प्रतिमाएं हैं। बाहर से यह गुफा दो गुफाओं के रूप में एक के ऊपर एक दिखती है।
गुफा नंबर 2 के दाई तरफ भगवान पार्श्वनाथ की पहली गुफा है। इसमें पार्श्वनाथ की पद्मासन मूर्ति का आकार भी भगवान नमिनाथ की समान ही है। गुफा में जाने के लिए उबड़ खाबड़ सिढिया हैं। मूर्ति का पीठासन सुसज्जित है। इसके दोनों ओर शेर खड़े हैं। बीच में धरणेन्र्द्र और पद्मावती देवी हैं। आसन में कमल खिले हैं। नाग का चिन्ह अंकित है भुजाओ में दोनों तरफ माला लिए आकाशचारी हैं। गजराज सूंड में कलश लिए हुए अभिषेक कर रहे हैं। सिर पर सप्तफणी सर्प है। छाती पर श्रीवत्स है। इस गुफा के दोनों तरफ की पूर्व पश्चिम दीवार में खडगासन प्रतिमाएं हैं जिसकी अवगाहना लगभग 5 मीटर है। पूर्व दिशा की दीवार में आकाशचारी, चमरधारी, गजराज कलश लिए सुरक्षित हैं।
गुफा नंबर 2 के बाई तरफ मूलनायक भगवान पार्श्वनाथ हैं परंतु इसके साथ में नेमीनाथ भगवान की मूर्ति भी चट्टानों में खुदी हुई है। इस गुफा की बनावट भी पहली गुफा के समान है। इसमें ऊपर नीचे दो सभागृह है। नीचे के सभागृह में नेमीनाथ की मूर्ति है जिस पर शंख का लांछन है। चट्टान का पत्थर बालूई है जिसके कारण हवा से चेहरे विकृत हो रहे हैं। आकाशचारी, चमरवाहक, गजराज भी विकृत हो गए हैं। इस मंदिर की उत्तरी दीवार में 8 पंक्तियों का लेख है जिस पर विक्रम संवत् 1535 लिखा है।
अन्य दाहिनी तरफ दो गुफाएं हैं। रास्ता अत्यंत उबड़ खाबड़ है तथा गुफाओं में झाड़ियां लगी है।