यह कहानी प्रेम और समर्पण की एक अनमोल मिसाल है। रतिराम और रामजानकी की जोड़ी, जिन्होंने 1970 में विवाह किया था, का प्यार और साथ जीवन भर स्थिर और मजबूत रहा। रतिराम के पैरालिसिस के बाद उनकी पत्नी रामजानकी ने उन्हें कभी अकेला महसूस नहीं होने दिया। वे उनकी सेवा में समर्पित थीं, लेकिन जब शुक्रवार को रतिराम का निधन हुआ, तो इस दुःख को रामजानकी सहन नहीं कर पाईं और उनका भी देहांत हो गया।
यह घटना इस बात का प्रतीक है कि गहरे रिश्ते और सच्चे प्रेम के बीच कोई भौतिक या मानसिक संकट नहीं आ सकता। दोनों का एक साथ अंतिम संस्कार करना उनके रिश्ते की गहरी भावना और एक-दूसरे के प्रति उनके प्यार का प्रमाण है। यह कहानी हमें यह सिखाती है कि सच्चे प्रेम में न केवल सुख, बल्कि दुख भी एक-दूसरे के साथ साझा किए जाते हैं।
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