भारत tv24×7 न्यूज चैनल रिपोर्टर – सैफ अली
बलरामपुर, 09 नवम्बर 2024/ छत्तीसगढ़ में पंचायत और निकाय चुनाव को लेकर असमंजस की स्थिति बनी हुई है, क्योंकि कार्यकाल समाप्त होने वाला है, लेकिन नए चुनाव कब होंगे, यह अभी तक स्पष्ट नहीं हो पाया है। सरकार चाहती है कि पंचायत और निकाय चुनाव एक साथ कराए जाएं, लेकिन यदि समय पर चुनाव नहीं हो पाते, तो प्रशासन इन कामकाज संभालने की योजना बना रहा है।
निकायों का कार्यकाल आमतौर पर पांच साल का होता है, और चुनाव कार्यकाल समाप्त होने से कुछ महीने पहले कराए जाते हैं, ताकि नई सरकार को समय पर कामकाज शुरू करने का अवसर मिल सके। ऐसा करने से सरकार को अपने कार्यों को सुचारु रूप से चलाने में मदद मिलती है और चुनावी प्रक्रिया से जुड़ी कोई रुकावट नहीं आती।
चुनावों में देरी के कारण
इस बार चुनावों में देरी की संभावना ज्यादा है। इसके कई कारण माने जा रहे हैं। सबसे पहला कारण यह है कि राज्य चुनाव आयोग को चुनाव की तैयारी के लिए और समय चाहिए। इसके अलावा, ओबीसी (अन्य पिछड़ा वर्ग) आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला भी अभी आना बाकी है, जो चुनावी प्रक्रिया को प्रभावित कर सकता है। कुछ लोगों का यह भी कहना है कि चुनाव कराना राज्य निर्वाचन आयोग का काम है और राज्य सरकार आयोग को चुनावी तारीख तय करने के लिए निर्देशित नहीं कर सकती।
नए कानून का प्रस्ताव
इस असमंजस को देखते हुए छत्तीसगढ़ सरकार एक नया कानून लाने की योजना बना रही है। इस नए कानून के तहत, यदि पंचायत और निकाय चुनाव तय समय पर नहीं हो पाते हैं, तो अगले छह महीने तक इन कामकाज प्रशासक द्वारा संचालित किया जाएगा। इस कदम से चुनावों में देरी की स्थिति में प्रशासनिक कार्यों को ठप होने से बचाया जा सकेगा और प्रशासन सुचारु रूप से चलता रहेगा।
महापौर और अध्यक्ष का चुनाव जनता से
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार, राज्य सरकार पंचायत और निकाय चुनाव एक साथ कराने के साथ ही महापौर और अध्यक्ष के चुनाव को सीधे जनता द्वारा कराने पर भी विचार कर रही है। इससे स्थानीय नेतृत्व को और अधिक जनसमर्थन प्राप्त होगा और लोकतांत्रिक प्रक्रिया को प्रगति मिलेगी।
निकाय और पंचायत चुनाव का महत्व
निकाय और पंचायत चुनाव, लोकतंत्र की मजबूत कड़ी माने जाते हैं क्योंकि ये चुनाव आम जनता को अपने प्रतिनिधियों का चयन करने का अवसर देते हैं। इस चुनाव के जरिए ही लोगों को अपने स्थानीय मुद्दों के लिए एक सही और सक्षम प्रतिनिधि मिल पाता है। साथ ही, यह चुनाव स्थानीय प्रशासन के लिए भी जिम्मेदारी तय करते हैं, जिससे क्षेत्रीय विकास और जन कल्याण की योजनाएं प्रभावी ढंग से लागू हो सकें।
क्या होगा अगर चुनाव नहीं होते?
अगर चुनाव समय पर नहीं होते और प्रशासन कार्यभार संभालता है, तो इससे लोगों का सीधा संपर्क स्थानीय सरकार से कम हो जाएगा। प्रशासक द्वारा चलाए जाने वाले कार्यों में आमतौर पर चुनावी संवेदनशीलता और जनहित के मुद्दों की उपेक्षा हो सकती है, जिसके कारण आम जनता को समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। इसके अलावा, चुनावी प्रक्रिया के स्थगित होने से राजनीति में अस्थिरता भी उत्पन्न हो सकती है।
निष्कर्ष
अब देखना यह होगा कि छत्तीसगढ़ सरकार इस असमंजस की स्थिति को कैसे हल करती है और पंचायत एवं निकाय चुनाव को समय पर आयोजित कराने में किस प्रकार की योजनाओं को लागू करती है। इस समय पर राज्य सरकार के सामने बड़ी चुनौती है कि चुनावों में देरी से राज्य के प्रशासनिक ढांचे में कोई अस्थिरता न आए और जनता को उनके अधिकारों का सही तरीके से प्रतिनिधित्व मिल सके।
चुनावों में देरी की स्थिति पर प्रदेशभर में चर्चा जारी है और यह सवाल उठ रहा है कि क्या सरकार समय रहते इन चुनावों को आयोजित कर पाएगी या फिर प्रशासक के तहत कामकाज को सुचारु बनाए रखने के लिए कदम उठाए जाएंगे।